एक-एक कदम
(लेखक: सी ए डॉ. विनय मित्तल)


जब भी उठेगा मन कोई बड़ा कार्य करने का,
सबसे पहले अपनों से ही सामना होगा इनकार करने का।
पर तुम डिगना मत, थमना मत,
बस हौसले की मशाल को बुझने मत देना।


हर बड़ा सपना पहले ठुकराया जाता है,
कदम-कदम पर सवाल उठाया जाता है।
पर जो चलते रहते हैं निश्चल और निरंतर,
वही बनते हैं मार्गदर्शक अंतर्मन के भीतर।


रास्ता आसान नहीं होगा
पैर खींचने वाले भी होंगे,
हौसला गिराने वाले भी मिलेंगे,
लेकिन तुम हर ठोकर को सीढ़ी बनाते चलना।


धीरे-धीरे जैसे-जैसे कदम बढ़ेंगे,
वो ही लोग जो नज़रें चुराते थे,
तुम्हारे क़रीब आने को आतुर नज़र आएंगे।
तब तुमसे हाथ मिलाना चाहेंगे,
और फिर…
तुम्हारी प्रशंसा को ही अपनी पहचान बनाएंगे।


लेकिन याद रखना —
ना ठहरना, ना गर्व में बह जाना,
विनम्र रहना, धरती-सा झुकते रहना।


क्योंकि जब तुम्हारा संकल्प समाज का संबल बन जाएगा,
तब कारवां खुद-ब-खुद तुम्हें आगे बढ़ाएगा।
और तुम देखोगे 
जिस समाज ने कभी ठुकराया था,
वही अब तुम्हारा रास्ता सजाएगा।


बस एक नेता की नियत सही हो,
तो परिवर्तन की रचना भी स्वतः हो।


हिम्मत रखो, चलते रहो…
लक्ष्य से दृष्टि मत हटाओ…
भारत पुकार रहा है — आगे बढ़ो, थको नहीं।


जय हिंद! जय भारत! जय वैश्य समाज!