प्रेरक कहानी 2


"महालक्ष्मी, अवसर और सेवा का संगम"


कहते हैं, सेवा का फल देर-सबेर जरूर मिलता है — बस शर्त है कि वह सच्चे मन से की जाए।
एक छोटे से कस्बे में दो व्यापारी रहते थे।




रघुवीर
पद, पहचान या शोहरत की उसे परवाह नहीं थी।
सुबह की पहली चाय से लेकर रात के आख़िरी काम तक, वह यही सोचता कि आज किसका भला हो सकता है।
उसे विश्वास था — काम से बड़ा कोई पद नहीं, और समर्पण से बड़ी कोई पहचान नहीं।”


उसकी आदत थी — जो मौका मिले, उसे हाथ से न जाने दे।
वह कहता —
"मौके रोज़ नहीं आते, और सेवा कभी खाली नहीं जाती। आज बोया बीज सालों बाद भी फल दे सकता है।"
जनसंपर्क बनाने में वह माहिर था, पर दिखावे से कोसों दूर।




श्यामलाल
उच्च पद पर था, और यही उसका सहारा बन गया।
सोचता — अब मेहनत की ज़रूरत ही क्या है?
दिखावे, आराम और अपने पद की धाक में वह यह भूल चुका था कि—


"राजा और रंग समय के साथ बदलते हैं; परिस्थितियाँ भिखारी को भी राजा बना देती हैं।"




महालक्ष्मी का आगमन


एक दिन महालक्ष्मी कस्बे में आईं।
सबसे पहले रघुवीर के घर पहुँचीं — वहाँ मेहनत की चमक, निष्ठा की सुगंध और समाज-प्रेम का उजाला था।
मुस्कुराकर बोलीं —
"जहाँ सेवा और समर्पण है, वहाँ मैं सदा वास करती हूँ।"


श्यामलाल के घर पहुँचीं तो वहाँ सिर्फ़ अहंकार और आलस्य मिला।
बिना रुके वे आगे बढ़ गईं।




संगठन की शक्ति


कुछ समय बाद, रघुवीर भारतीय वैश्य ग्लोबल फाउंडेशन (BVGF) से जुड़ गया।
उसने महसूस किया —
"अकेले की मेहनत एक दीपक है, लेकिन संगठित होकर काम करना एक सूरज है, जो अंधेरों को भी मिटा देता है।"


BVGF ने उसे मंच, मार्गदर्शन और सच्चे साथियों का परिवार दिया।
रघुवीर ने पद का मोह छोड़ कर्म को पहचान बना लिया।
आज वह व्यापार में भी सफल है और समाज में भी सम्मानित है।


लोग कहते —
"रघुवीर के घर महालक्ष्मी का वास है, क्योंकि वह अवसर को पहचानता है, सेवा का सम्मान करता है और समाज को साथ लेकर चलता है।"




सीख:





भाव एवं शब्द
सीए डॉ. विनय मित्तल
राष्ट्रीय अध्यक्ष
भारतीय वैश्य ग्लोबल फाउंडेशन


अस्वीकरण:
इस कहानी में प्रयुक्त नाम और पात्र पूरी तरह काल्पनिक हैं। इनका किसी भी वास्तविक व्यक्ति, जीवित या मृत, से कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संबंध नहीं है।