इस हाथ दे, उस हाथ ले
व्यापार जगत की युगों पुरानी कहावत के आधार पर गाड़ियों के प्रदूषण की समस्या का एक संभावित समाधान
सड़कों पर बढ़ती हुई गाड़ियां एक समस्या बनती जा रही है. सरकार चाहती है कि ज्यादा गाड़ियां बिकें, ताकि ज्यादा टैक्स मिले. कार का निर्माता चाहता है कि ज्यादा गाड़ियां बिकें ताकि ज्यादा कमाई हो सके. कार का डीलर चाहता है ज्यादा गाड़ियां बिकती रहे, कार का सर्विस सेंटर चाहता है ज्यादा गाड़ियां बार बार और समय-समय पर सर्विस होती रहें.
और तो और, एक आम व्यक्ति भी यही तो चाहता है कि मैं नई गाड़ी खरीदूं; अपनी नई गाड़ी में घूमूं. स्कूटर पर चलता हुआ गाड़ी आदमी अपनी गाड़ी में बैठना चाहता है; टैक्सी में जाता हुआ आदमी अपनी निजी गाड़ी से चलना चाहता है.
नतीजा- सड़कों पर गाड़ियों की भरमार है. जहां भी जाएं, हर जगह लगा हुआ ट्रैफिक का जाम परेशान करता है. गाड़ियों के हॉर्न की पों-पों, भों-भों कान में दर्द कर देती है. इतना ही नहीं, बेहिसाब प्रदूषण भी सभी को झेलना पड़ता है.
विभिन्न सरकारों ने इसको कण्ट्रोल करने के भरसक प्रयत्न किये. यह कहना उचित नहीं होगा कि पिछली सरकारें गलत थीं या वर्तमान सरकार गलत हैं. सभी ने यथा संभव कोशिश की, और आज भी जारी हैं. भारत मार्क ईंधन के प्रयोग को बढ़ावा देना, ओड-इवन का प्रयोग, दस साल से पुराने वाहनों को हटाने का प्रयत्न, इलेक्ट्रिक कार का आरम्भ, हाइड्रोजन फ्यूल की तरफ बढ़ने की कोशिश... सरकार के स्तर पर गंभीरता ही दिखाते हैं. सभी ने यथा संभव कोशिश की, सफलता नहीं मिली यह अलग बात है.
परन्तु हरेक व्यक्ति की अपनी अलग समस्याएं हैं. दस साल से पुरानी गाड़ियों को सड़क से हटाने का निर्देश जितना सरल लगता है, उतना है नहीं. एक मध्यवर्गीय परिवार जो गाड़ी का प्रयोग कभी-कभी किंतु बेहद आवश्यक कार्यों के लिए ही करता है, वह अपनी पुरानी गाड़ी बेचकर नई गाड़ी में खर्च करना उचित नहीं समझता.
लेकिन वास्तविकता यह है कि हमको पर्यावरण को भी देखना है, सड़क के ट्रैफिक को भी और जनता की सुविधाओं को भी. ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या कोई ऐसा तरीका संभव है कि किसी के व्यवसाय पर चोट पहुंचाए बिना सड़कों पर गाड़ियों की संख्या को सीमित किया जा सके?
भारतीय वैश्य ग्लोबल फाउंडेशन इससे सम्बंधित एक सुझाव प्रस्तुत करती है-
सबसे पहले निकट भविष्य की एक अच्छी सी तारीख निश्चित कर लेते हैं. मान लीजिए यह 26 जनवरी सन 2026 है. शुभ दिन है. एक निर्णय कुछ इस प्रकार से लिया जाए कि नई गाड़ी खरीदने वाले को एक पुरानी गाड़ी के स्क्रैप में जाने का या नष्ट होने का सर्टिफिकेट जमा करना आवश्यक होगा. अब किसी के घर में तीन गाड़ियां हैं, और अगर उसे चौथी गाड़ी लेनी है तो उसके पास दो ही विकल्प होंगे. या तो अपनी पहली तीन गाड़ियों में से किसी एक गाड़ी को स्क्रैप डीलर को बेच कर और उसे नष्ट करने का सर्टिफिकेट प्राप्त करे; उसके रजिस्ट्रेशन के कागजात संबंधित आरटीओ में जमा करके उन्हें निरस्त करने का प्रमाण पत्र ले, और उस प्रमाण पत्र के आधार पर एक नई गाड़ी खरीद ले.
अन्यथा दूसरे विकल्प के बारे में सोचे. मान लीजिए किसी व्यक्ति के पास कोई अन्य गाड़ी है ही नहीं. आखिर वह क्या करेगा? स्वाभाविक रूप से उसे किसी अन्य ऐसे व्यक्ति की तलाश करनी होगी, जिसके पास एक पुरानी गाड़ी हो जिसको कि स्क्रैप किया जा सके और वह दूसरा व्यक्ति हाल-फिलहाल में नई गाड़ी लेने का इच्छुक ना हो. बहुत संभव है अपनी उस गाड़ी को निकालने के लिए वह व्यक्ति कुछ अतिरिक्त धनराशि की मांग भी करे. इस तलाश के लिए वाहन डीलर या उनके एजेंट भी सहायता कर सकते हैं.
उचित होगा कि इसके लिए एक विशेष वेबसाइट या पोर्टल बनाया जाये. इस पोर्टल में, पुरानी गाड़ी बेचने के इच्छुक एवं नई गाड़ी खरीदने के इच्छुक दोनों तरह के लोग अपना रजिस्ट्रेशन कर सकेंगे और पुरानी गाड़ी के स्क्रैप किए जाने के सर्टिफिकेट को उचित मूल्य पर नई गाड़ी खरीदने वाले ग्राहक को बेच सकेंगे. अगर उचित समझा जाये तो चार या पांच दो-पहिया वाहनों के स्क्रैप किये जाने के सर्टिफिकेट के बदले एक चार-पहिया वाहन को खरीदने की अनुमति भी दी जा सकती है.
यह भी संभव है कि इस पॉलिसी के लागू होने की तिथि से पूर्व ही बहुत से लोग एक या एक से अधिक गाड़ियां खरीदना चाहेंगे, ताकि बाद में उनको बेचकर उसके बदले में पुरानी गाड़ी को स्क्रैप करने के कागज़ मिलने में आसानी रहे और वह लोग उसका सर्टिफिकेट हासिल कर सकें. तात्कालिक रूप से इससे छोटी गाड़ियों की बिक्री बढ़ेगी, सरकार को टैक्स भी ज्यादा मिलेगा, और वाहन कंपनियों को भी अपना स्टॉक कम करने में आसानी होगी.
बहुत से लोगों को प्रत्येक 8-10 महीने या एक वर्ष के बाद ही अपना वाहन बदलने की आदत होती है. पुराने वाहनों को स्क्रैप करने-करवाने में यह लोग स्वयं ही आगे बढ़कर अपनी भूमिका अदा करेंगे.
उपरोक्त विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. कृपया इस मुद्दे पर अपने विचार से अवगत करा कर भारतीय वैश्य ग्लोबल फाउंडेशन को समृद्ध करें और अपने पर्यावरण को बेहतर बनाने में अपना योगदान दें.
देवेश कुमार सिंघल
जिलाध्यक्ष (उद्योग विकास विंग)
भारतीय वैश्य ग्लोबल फाऊंडेशन
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लेखक परिचय
देवेश कुमार सिंघल रुड़की विश्वविद्यालय (वर्तमान में आईआईटी रुड़की) से लुगदी एवं कागज अभियांत्रिकी में परास्नातक है. लेखन कार्य में उनकी विशेष सूची है और उनके अनेक तकनीकी पत्र विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं.
पर्यावरण के लिए अपनी व्यक्तिगत प्रतिबद्धता के चलते ही उन्होंने अपनी व्यक्तिगत वेबसाइट www.dksinghal.in पर पर्यावरण से सम्बंधित विचारों के लिए एक अलग पेज बनाया है.
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